जीव कितना ही सूक्ष्म हो या विशाल सभी के प्रति स्नेह का भाव रखना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। प्यार का दूसरा रूप होता है 'स्नेह'। यह ऐसा प्यार है जो हमें हमारे सद्गुणों के कारण मिलता है। यह एक तरह का प्रतिदान होता है, अर्थात बदले में मिला प्यार।
'स्नेह' आप किसी से जिद से नहीं पा सकते, उसके लिए आपको स्वयं उस रस सागर में गोता लगाना होगा। हम अपने से बड़ों को सम्मान और छोटों को प्यार देगें तो हमारे बीच का स्नेह स्रोत कभी सूख नहीं पाएगा। प्यार का हलका-सा स्पर्श रोते हुए व्याक्ति के होठों पर मुस्कान दे सकता है, उसके तनाव की बदली को छांट देता है। स्नेह में पगे हुए स्वर किसी को सुख का अहसास दे जाते हैं, उसके मन को निर्मल कर जाते हैं।
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