एक घर हैं। सभी बैठे हैं एक जगह पर। पँडित हैं और माता का हवन हो रहा। मेने देखा की हर साल हवन होता हैं। पँडित भी आते है। मंत्रो का जाप चल रहा हैं। शायद भगवान का ध्यान भी करते होंगे।
हवन खत्म हुआ और सब कुछ हुआ तभी उनको पता चलता हैं कि पड़ोसी का मोबाइल खराब हो गया है। और वो परेशान है।
फिर क्या था। सारे धर्म सारी अच्छाई सब शर्मशार होने लगी। पूरा परिवार जोर जोर से हंसने लगा जैसी की मन की मुराद पूरी हुई। ये एक बार नही हमेशा ही ये देखा की जब भी पड़ोसी पर कोई दुःख या परेशानी आई तो धर्म की बाते तो बहुत दूर।
उनको ओर दुखी और जलाने की कोशिश की जाते। और खुद वो बहुत ही धर्मिक समझते होंगे।
छत पर हनुमान का झण्डा और मोबाइल पर साई की रिंगटोन। क्या ये सब दुनिया को बताने के लिए है हम हनुमान भक्त हैं। क्या हवन कुण्ड सब घर की शुद्धि के लिए हैं जबकि मन तो ईर्ष्या रूपी जहर से भरा पड़ा हैं।
क्या ये कहानी सब घर की नही। जो लोग दूसरों के दुःख में आनंद का अनुभव करते हैं उनसे बड़ा कोई नासितक कोई और नहीै।
सच तो ये हैं आपको अपने मन को शुद्ध करने की सख्त जरूरत हैं। मै सभी लोगो से कहता हूँ की कोई जरूरत नही ज्ञान की या ध्यान की, या भक्ति की अगर आपका मन निर्मल नही कोमल नही। तो ये सब नाटक व्यथँ हैं।
क्या छिप सकता है निरकारी भगवान से। अगर आपको ईर्ष्या में आनंद आता हैं। तो बंद करो ये सब दिखावा धर्मिक होने का।
सब बन्द करके सिर्फ अपने मन को शुद्ध करने का प्रयास करे। ये सही मायने में ध्यान और हवन हैं।
सुखदेव तनेजा की कलम से (It's just Beginning)
फिर हाजिर होंगे नये topics के साथ।
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